राम लक्ष्मण परशुराम संवाद के प्रश्नों के उत्तर ,Class 10,क्षितिज
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद प्रश्न 1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
Ram Lakshman Parshuram Samvad Question And Answer
प्रश्न 1.
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए ?
उत्तर–
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने शिव धनुष के टूट जाने पर निम्नलिखित तर्क दिए थे।
- लक्ष्मण कहते हैं कि बचपन में हमने ऐसी कई धनुहियाँ तोड़ी हैं। परंतु आप कभी भी क्रोधित नहीं हुए। इसी धनुष से आपका इतना मोह क्यों है ?
- मुझे तो यह धनुष भी और धनुषों के जैसा ही साधारण लगा।
- श्रीराम ने उस धनुष को नया समझकर उठाने का प्रयास किया था। लेकिन वह धनुष इतना कमजोर व पुराना था कि श्रीराम के हाथ लगाते ही खुद ब खुद टूट गया।
- इस धनुष के टूट जाने से मुझे तो कोई लाभ या हानि नजर नहीं आती हैं।
प्रश्न 2.
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
भगवान श्री राम मर्यादा , विनम्रता , धैर्य व सहनशीलता के प्रतीक हैं। वो सदैव बड़ों का आदर व सम्मान करते थे। इसीलिए उन्होंने धनुष के टूट जाने से क्रोधित हुए परशुराम को शांत करने का प्रयास किया। और विनम्र निवेदन कर परशुराम से कहा कि “धनुष तोड़ने वाला आपका ही कोई एक दास होगा”। श्री राम मृदुभाषी थे। वो अपनी शीतल वाणी से परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास करते रहे।
दूसरी ओर लक्ष्मण का स्वभाव श्री राम के बिलकुल विपरीत था। जहाँ राम शांत व विनम्र थे । वही लक्षमण का स्वभाव उग्र एवं उद्दंड था। वे परशुराम से कहते हैं कि एक मामूली धनुष के टूट जाने से इतना नाराज होने की कोई आवश्यकता नहीं हैं। वो परशुराम पर लगातार व्यंग करते रहे। जिसने परशुराम के क्रोधाग्नि को बढ़ाने में घी (आहूति) का काम किया। वो परशुरामजी की हर बात का अपने तर्कों के द्वारा विरोध करते रहे। और उनके क्रोध को अनुचित ठहराते रहे।
प्रश्न 3.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर-
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोलै चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
संवाद
लक्ष्मण – यह धनुष तो श्रीराम के छूते ही टूट गया । इसमें रघुपतिजी का कोई दोष नहीं हैं। इसीलिए हे मुनि ! आप बिना कारण के ही क्रोधित हो रहे हैं।
परशुराम जी – (परशुराम जी अपने फरसे की ओर देखकर बोले) हे बालक !! क्या तुम मेरे स्वभाव के बारे में नहीं जानते हो ।
प्रश्न 4.
परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा , निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए।
पद्यांश –
बाल ब्रह्मचारी अति कोही बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥
उत्तर-
परशुरामजी ने अपने विषय में सभा में कहा कि वो बाल ब्रह्मचारी हूँ और अत्यंत क्रोधी स्वभाव के भी हैं। उन्होनें कई बार इस धरती से क्षत्रियों का नाश कर सारी भूमि ब्राह्मणों को दान कर दी हैं। वो कहते हैं कि उन्हें भगवान शिव का वरदान प्राप्त है। और उन्होनें सहस्रबाहु की भुजाओं को इसी फरसे से कटा था।
इसीलिए हे लक्ष्मण ! तुम मेरे इस फरसे को गौर से देख लो।और अपने माता पिता की असहनीय पीड़ा की चिंता करो। क्योंकि उनके फरसे की गर्जना सुनकर गर्भवती स्त्रियों का गर्भ भी गिर जाता है।
Ram Lakshman Parshuram Samvad Question Answer
प्रश्न 5.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं ?
उत्तर-
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की निम्न विशेषताएँ बताईं।
- वीर योद्धा शांत , विनम्र , धौर्यवान एवं साहसी होते हैं। लेकिन अहंकारी नहीं होते हैं।
- वीर कभी भी अपनी प्रशंशा स्वयं नहीं करते हैं। बल्कि दूसरे लोग उनकी वीरता की प्रशंशा करते हैं।
- वीर सदैव दूसरों का आदर व सम्मान करते हैं।
- वीर कभी भी अपनी वीरता पर अभिमान नहीं करते हैं। और युद्ध भूमि में शत्रु के सामने अपनी वीरता का बखान करने के बजाय युद्ध में वीरता दिखाते हैं।
प्रश्न 6.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ने के लिए हर कदम पर साहस और शक्ति की आवश्यकता होती हैं। लेकिन अगर व्यक्ति के अन्दर साहस और शक्ति के साथ-साथ विनम्रता भी हो। तो इससे अच्छी और कोई बात हो ही नहीं सकती हैं। क्योंकि विनम्रता हमें धैर्यवान , सहनशील और लोकप्रिय बनती हैं।
विनम्रता हमें दूसरों का आदर-सम्मान करना सिखाती हैं। साहसी , शक्तिवान और विनम्र व्यक्ति का हर कोई आदर करता हैं। ऐसे लोगों के काम आसानी से बन जाते हैं। प्रभु श्री राम इसका जीता जगता उदाहरण हैं।
प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क)
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन पूँकि पहारू।
भावार्थ –
परशुरामजी की बात पर लक्ष्मणजी हँसकर अपनी मधुर बाणी से बोले हे मुनिवर ! आप अपने आप को महान योद्धा समझते हैं । इसीलिए मुझे बार-बार कुल्हाड़ी (फरसा) दिखा रहे हैं। ऐसा लग रहा हैं मानो आप फूँक मारकर ही पहाड़ को उड़ा देना चाहते हों ।
(ख)
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
भावार्थ –
लक्ष्मण परशुरामजी से कहते हैं कि मैं कोई कुम्हड़े की बतिया नहीं हूँ जो तर्जनी अंगुली दिखाने से ही कुम्हला (मर) जाती है। आपके कुठार व धनुषबाण को देखकर ही मैंने यह बात बड़े अभिमान से कही हैं ।
(ग)
गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ।।
भावार्थ –
परशुरामजी की बात सुनकर विश्वामित्र मन ही मन मुस्कुराये और सोचने लगे कि परशुरामजी ने आज तक सभी क्षत्रियों में विजय पायी हैं। इसीलिए ये राम-लक्ष्मण को भी एक साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं। ये बालक (लक्ष्मण) फौलाद का बना हुआ , न कि गन्ने की खांड का। लगता हैं कि परशुराम जी की बुद्धि उनके क्रोध ने खत्म कर दी हैं।
प्रश्न 8.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर-
- यह काव्यांश रामचरितमानस के बालकाण्ड से लिया गया हैं।
- रामचरितमानस अवधी भाषा में लिखी गई हैं। जो सरल , सहज व लोकप्रिय हैं।
- इसमें चौपाई , छंद व दोहे का अच्छा प्रयोग किया गया हैं।
- रौद्र रस , वीर रस , शांत रस एवं हास्य रस का बखूबी इस्तेमाल किया गया हैं।
- तुलसीदासजी ने अनुप्रास ,रूपक , यमक ,उपमा , उत्प्रेक्षा व पुनरुक्ति अलंकार का बड़ा ही सुंदर प्रयोग किया हैं।
- लोकोक्तियां व मुहावरों का खूब प्रयोग किया गया हैं ।
- काव्य में तत्सम शब्दों का भी अच्छा प्रयोग किया गया है।
- व्यग्यों के प्रयोग ने काव्यांश को और आकर्षक बनाया हैं।
- पूरे काव्यांश में एक संगीतात्मक लयबद्धता हैं।
- प्रसंगानुकूल भाषा का बेहतरीन प्रयोग किया गया हैं।
प्रश्न 9.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उदाहरण 1 .
बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस किन्हि गोसाईँ॥
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥
भावार्थ
हे मुनिवर ! हमने बचपन में बहुत सी धनुहियाँ तोड़ी थी। लेकिन तब आपने कभी भी हम पर क्रोध नहीं किया था। इसी धनुष पर इतनी ममता का क्या कारण है ?
उदाहरण 2.
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥
भावार्थ
तुम अपने व्यवहार के कारण उस गति को पाओगे जिससे तुम्हारे माता पिता को असहनीय पीड़ा होगी। मेरे फरसे की गर्जना सुनकर गर्भवती स्त्रियों का गर्भ तक गिर जाता है।
उदाहरण 3.
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥
भावार्थ
इस पर लक्ष्मण ने कहा कि हे मुनि ! आपके सुयश के बारे में आपके रहते हुए दूसरा कौन वर्णन कर सकता है। आपने अपने मुंह से ही अपने कामों के बारे में अनेक बार , अनेक तरीकों से वर्णन किया है।
उदाहरण 4.
मिले न कबहोँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे॥
भावार्थ
हे मुनिश्रेष्ठ !! लगता है आपको पहले कभी सचमुच के बलवान वीर नहीं मिले। हे ब्राह्मण देवता ! आप घर में ही बड़े हैं। यह सुनकर सभा में उपस्थित सब लोग अनुचित है , अनुचित है , कहकर पुकारने लगे। तभी भगवान श्रीराम ने इशारे कर लक्ष्मण को रोक दिया।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
उत्तर – ‘ब’ वर्ण की बार बार आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार हैं ।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
उत्तर – इसमें दो अलंकारों का प्रयोग हुआ हैं।
1 . कोटि-कुलिस में ‘क’ वर्ण की बार बार आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार हैं ।
2 . कोटि-कुलिस सम बचनु में उपमा अलंकार हैं।क्योंकि परशुराम के वचनों की तुलना बज्र से की गई है।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। ।
बार बार मोहि लागि बोलावा ॥
उत्तर –
कालु हाँक जनु लावा में उत्प्रेक्षा अलंकार हैं।
बार-बार मोहि लागि बोलावा – पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार।क्योंकि बार-बार शब्द दो बार आया है लेकिन दोनों का अर्थ अलग अलग ना होकर एक ही है।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥
उत्तर –
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु – उपमा अलंकार है। क्योंकि लक्ष्मण के उत्तर परशुराम की क्रोध की अग्नि को भड़काने में घी (आहूति) का काम कर रहे हैं।
जल सम वचन – उपमा अलंकार है। क्योंकि भगवान श्री राम के वचन जल के समान कार्य कर रहे हैं।
रघुकुलभानु – रूपक अलंकार है।यहां पर भगवान श्री राम के गुणों की तुलना सूर्य से की गई है।