राम लक्ष्मण परशुराम संवाद अर्थ सहित – Ram Lakshman Parshuram Samvad in Hindi Class 10
Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 Summary
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद – तुलसीदास
1.तुलसीदास का जीवन परिचय- Tulsidas Ka Jeevan Parichay: गोस्वामी तुलसीदास के जन्म एवं स्थान के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। परन्तु अधिकांश विद्वान इनका जन्म 1532 में सोरों में मानते हैं। इनके पिता एवं माता का नाम आत्मा राम दुबे एवं हुलसी था। इनका बचपन काफी कष्टपूर्ण था। बचपन में ही ये अपने माता-पिता से बिछड़ गए थे। इनके गुरु नरहरि दास थे। इनका विवाह रत्नावली से हुआ, जिन्होंने इनका जीवन राम-भक्ति की ओर मोड़ने का सफल प्रयास किया।
इनके ग्रन्थ रामचरित मानस में इन्होंने समस्त पारिवारिक संबंधों, राजनीति, धर्म, सामाजिक व्यवस्था का बड़ा ही सुन्दर उल्लेख किया। रामचरित मानस के अतिरिक्त इनके अन्य ग्रन्थ विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, गीतावली इत्यादि हैं।राम लक्ष्मण परशुराम संवाद अर्थ सहित – Ram Lakshman Parshuram Samvad in Hindi Class 10राम लक्ष्मण परशुराम संवाद के प्रश्नों के उत्तर ,Class 10,क्षितिज
Ram Lakshman Parshuram Samvad Explanation
परशुराम लक्ष्मण संवाद के दोहे और चौपाइयाँ रामचरितमानस के बालकाण्ड से ली गई हैं। बालकाण्ड में भगवान राम के जन्म से लेकर राम-सीता विवाह तक के प्रसंग आते हैं।
यह प्रसंग उस समय का हैं जब राजा जनक ने अपनी पुत्री माता सीता के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था। जिसमें देश विदेश के सभी राजाओं को आमंत्रित किया गया। स्वयंवर की शर्त के अनुसार जो भगवान शिव का धनुष तोड़ेगा , माता सीता उसी को अपने पति के रूप में वरण करेंगी।
भगवान राम ने शिव का धनुष तोड़ दिया।और माता सीता ने भगवान राम को अपना पति स्वीकार कर उन्हें वरमाला पहनाई। लेकिन जब भगवान राम ने भगवान शिव का धनुष तोडा तो , उसके टूटने की आवाज तीनों लोकों में सुनाई दी।राम लक्ष्मण परशुराम संवाद अर्थ सहित – Ram Lakshman Parshuram Samvad in Hindi Class 10राम लक्ष्मण परशुराम संवाद के प्रश्नों के उत्तर ,Class 10,क्षितिज
परशुराम जो भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। जब उन्होंने धनुष टूटने की आवाज सूनी तो वो बहुत क्रोधित हुए। और तुरंत राजा जनक के दरबार में पहुँच गए। यह प्रसंग क्रोधित परशुराम और भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण के बीच हुए संवाद का है।
चौपाई 1.
अर्थ –
परशुराम को क्रोधित देखकर राम कहते हैं कि हे नाथ !! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई सेवक/ दास होगा। आपकी क्या आज्ञा हैं। मुझे बताइए। यह सुनकर क्रोधित परशुराम नाराज होकर कहते हैं।
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई॥
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥
अर्थ –
सेवक तो वो होता है जो सेवा करे। शत्रु के जैसे काम करके तो लड़ाई होनी निश्चित है। इसीलिए हे राम ! जिसने भी यह शिव धनुष तोड़ा है। वह सहस्रबाहु के समान ही मेरा शत्रु है।राम लक्ष्मण परशुराम संवाद अर्थ सहित – Ram Lakshman Parshuram Samvad in Hindi Class 10राम लक्ष्मण परशुराम संवाद के प्रश्नों के उत्तर ,Class 10,क्षितिज
अर्थ –
फिर वो राजसभा की तरफ देखते हुए कहते हैं कि जिसने भी शिव धनुष तोड़ा है वह व्यक्ति खुद बखुद इस समाज से अलग हो जाए , नहीं तो यहाँ बैठे सारे राजा मेरे हाथों मारे जाएँगे। परशुराम के ऐसे बचन सुनकर लक्ष्मण मुसकराने लगे और परशुराम का अपमान करते हुए बोले। …
बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस किन्हि गोसाईँ॥
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥
अर्थ –
हे मुनिवर ! हमने बचपन में बहुत सी धनुहियाँ तोड़ी थी। लेकिन तब आपने कभी भी हम पर क्रोध नहीं किया था। इसी धनुष पर इतनी ममता का क्या कारण है ? यह सुनकर भृगुवंश की ध्वजा स्वरूप परशुराम क्रोधित होकर बोले। …
दोहा –
अर्थ –
अरे राजकुमार ! तुम अपना मुँह संभाल कर क्यों नहीं बोलते हो , लगता है तुम्हारे सिर पर काल नाच रहा है। सारे संसार में प्रसिद्ध शिव का यह प्राचीन धनुष क्या तुझे मामूली धनुही के समान लग रहा हैं।
चौपाई 2 .
अर्थ –
तब लक्ष्मण ने हँस कर कहा हे मुनिश्रेष्ठ ! मेरी समझ से तो सभी धनुष एक समान ही हैं। इस पुराने धनुष के टूटने से क्या लाभ , क्या हानि । श्री राम ने तो इसे नया समझ कर उठाया था।
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोलै चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
अर्थ –
लेकिन यह धनुष तो श्रीराम के छूते ही टूट गया । इसमें रघुपतिजी का कोई दोष नहीं हैं। इसीलिए हे मुनि ! आप बिना कारण के ही क्रोधित हो रहे हैं। इसके बाद परशुराम जी अपने फरसे की ओर देखकर बोले हे दुष्ट ! क्या तुने मेरे स्वभाव के बारे में नहीं सुना हैं।
अर्थ –
मैं बालक समझ कर तुम्हारा वध नहीं कर रहा हूँ। पर तुम मुझे केवल एक साधारण ऋषि समझने की भूल कर रहे हो। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और अत्यंत क्रोधी भी हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का विनाश करने के लिए पूरे विश्व में विख्यात हूं ।
अर्थ –
मैंने अपनी भुजाओं के बल से इस पृथ्वी को कई बार क्षत्रिय विहीन कर सारी भूमि ब्राह्मणों को दान कर दी हैं । मुझे भगवान शिव का वरदान भी प्राप्त है। मैंने सहस्रबाहु की भुजाओं को इसी फरसे से कटा था। इसीलिए हे राजकुमार ! तुम मेरे इस फरसे को गौर से देख लो।
दोहा-
अर्थ –
तुम अपने व्यवहार के कारण उस गति को पाओगे जिससे तुम्हारे माता पिता को असहनीय पीड़ा होगी। मेरे फरसे की गर्जना सुनकर गर्भवती स्त्रियों का गर्भपात हो जाता है।
चौपाई 3 .
अर्थ –
इस पर लक्ष्मणजी हँसकर अपनी मधुर बाणी से बोले हे मुनिवर ! आप अपने आप को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं । इसीलिए मुझे बार-बार कुल्हाड़ी (फरसा) दिखा रहे हैं। ऐसा लग रहा हैं मानो आप फूँक मारकर ही पहाड़ को उड़ा देना चाहते हों ।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
अर्थ –
मैं कोई कुम्हड़े की बतिया नहीं हूँ जो तर्जनी अंगुली दिखाने से ही कुम्हला (मर) जाती है।आपके कुठार व धनुषबाण देखकर ही मैंने यह बात अभिमान से कही हैं
अर्थ –
जनेऊ से तो आप एक भृगुवंशी ब्राह्मण जान पड़ते हैं। इसलिए मैंने अब तक अपने क्रोध को काबू किया हुआ है। देवता , ब्राह्मण , हरिजन और गाय , इन सब पर हमारे कुल के लोग अपनी वीरता नहीं दिखाते हैं।
अर्थ –
क्योंकि इनको मारने से पाप लगता हैं। और इन सब से युद्ध में हार जाने से अपकीर्ति होती है। इसीलिए आप मारें तो भी , हमें आपके पैर पकड़ने चाहिए। वैसे आपका एक-एक वचन ही करोड़ों बज्रों के समान हैं। आप धनुष-बान और कुल्हाड़ी को तो व्यर्थ ही धारण करते है।
दोहा –
अर्थ –
आपके धनुष बाण और कुठार (फरसे) को देखकर अगर मैंने कुछ अनुचित कह दिया हो तो हे मुनिवर ! आप मुझे क्षमा कीजिए। यह सुनकर भृगुवंशमणि परशुराम गंभीर बाणी में बोले। ..
चौपाई 4 .
ऐसा सुनकर परशुराम ने विश्वामित्र से कहा। हे विश्वामित्र ! यह बालक कुटिल और कुबुद्धि लगता है। और यह काल के वश में होकर अपने ही कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवंशी रुपी चंद्रमा में एक कलंक के समान है। यह बालक मूर्ख , उदंण्ड , निडर है और इसे भविष्य का भान तक नहीं है।
अर्थ –
यह तो क्षण भर में ही काल के गाल (मुँह) में समा जायेगा। मैं अभी बता दे रहा हूं फिर मुझे दोष मत देना । यदि तुम इस बालक को बचाना चाहते हो तो , इसे मेरे प्रताप , बल और क्रोध के बारे में बता कर इसे मना लो।
अर्थ –
इस पर लक्ष्मण ने कहा कि हे मुनि ! आपके सुयश के बारे में आपके रहते हुए दूसरा कौन वर्णन कर सकता है। आपने अपने मुंह से ही अपने कामों के बारे में अनेक बार , अनेक तरीकों से वर्णन किया है।
अर्थ –
इतना कहने के बाद भी अगर आपको संतोष नहीं हुआ हो तो , आप फिर से कुछ कह दीजिए । आप अपना क्रोध दबाकर असह्य दुख मत सहन कीजिए । आप वीरता का व्रत धारण करने वाले धैर्यवान हैं। इसीलिए गाली देते हुए आप शोभायमान नहीं दिखते हैं।
दोहा-
अर्थ –
जो शूरवीर होते हैं वे व्यर्थ में अपनी बड़ाई नहीं करते , बल्कि युद्ध भूमि में अपनी वीरता को सिद्ध करते हैं। युद्ध में अपने शत्रु को सामने देखकर अपनी झूठी प्रशंशा तो कायर करते हैं।
चौपाई 5.
अर्थ –
ऐसा लग रहा है मानो आप तो काल (यमराज) को आवाज लगाकर बार-बार मेरे लिए बुला रहे हो। लक्ष्मण के कटु वचन को सुनकर परशुराम ने क्रोधित होकर अपना फरसा हाथ में ले लिया।
अर्थ –
और बोले अब मुझे कोई दोष नहीं देना। यह कड़ुवा वचन बोलने वाला बालक मरने के ही योग्य है । मैं अब तक इसे बालक समझकर बचा रहा था। लेकिन लगता है कि अब इसकी मृत्यु निकट आ गई है।
परशुराम को क्रोधित होते देखकर विश्वामित्र बोले हे मुनिवर ! साधु लोग तो बालकों के गुण और दोष की गिनती नहीं करते हैं। इसलिए आप इसके अपराध को क्षमा कर दीजिए। परशुराम ने क्रोधित होते हुए कहा मै दयारहित और क्रोधी हूँ। और यह गुरुद्रोही और अपराधी मेरे सामने। …
अर्थ –
उत्तर दे रहा हैं फिर भी मैं इसे बिना मारे छोड़ रहा हूँ । हे विश्वामित्र ! सिर्फ तुम्हारे प्रेम के कारण। नहीं तो मैं इस फ़रसे से इसका काम तमाम कर देता और मुझे बिना किसी परिश्रम के ही अपने गुरु के कर्ज को चुकाने का मौका मिल जाता।
दोहा –
ऐसा सुनकर विश्वामित्र मन ही मन हँसे और सोचने लगे कि परशुरामजी आज तक सभी क्षत्रियों पर विजयी रहे। इसीलिए ये राम-लक्ष्मण को भी एक साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं। ये बालक (लक्ष्मण) फौलाद का बना हुआ , न कि गन्ने की खांड का। परशुराम जी अभी भी इनकी साहस , वीरता व क्षमता से अनभिज्ञ हैं।
चौपाई 6 .
तब लक्ष्मण ने परशुरामजी कहा , हे मुनिश्रेष्ठ ! आपके पराक्रम को कौन नहीं जानता। वह सारे संसार में प्रसिद्ध है। आपने अपने माता पिता का ऋण तो चुका ही दिया हैं और अब अपने गुरु का ऋण चुकाने की सोच रहे हैं।
अर्थ –
और अब आप ये बात भी मेरे माथे डालना चाहते हैं। बहुत दिन बीत गये। इसीलिए उस ऋण में ब्याज बहुत बढ़ गया होगा। बेहतर है कि आप किसी हिसाब करने वाले को बुला लीजिए। मैं आपका ऋण चुकाने के लिए तुरंत थैली खोल दूंगा।
अर्थ –
लक्ष्मण के कडुवे वचन सुनकर परशुराम ने अपना फरसा उठाया और लक्ष्मण पर आघात करने को दौड़ पड़े । सारी सभा हाय हाय पुकारने लगी । इस पर लक्ष्मण जी बोले हे मुनिश्रेष्ठ !! आप मुझे बार बार फरसा दिखा रहे हैं। हे छत्रिय राजाओं के शत्रु !! मैं आपको ब्राह्मण समझ कर बार-बार बचा रहा हूं।
अर्थ –
हे मुनिश्रेष्ठ !! लगता है आपको पहले कभी सचमुच के बलवान वीर नहीं मिले। हे ब्राह्मण देवता ! आप घर में ही बड़े हैं। यह सुनकर सभा में उपस्थित सभी लोग अनुचित है , अनुचित है , कहकर पुकारने लगे। तभी भगवान श्रीराम ने इशारा कर लक्ष्मण को रोक दिया।
दोहा-
अर्थ –
लक्ष्मण के उत्तरों ने , परशुरामजी के क्रोध रूपी अग्नि में आहुति का काम किया। जिससे उनका क्रोध अत्यधिक बढ़ गया। जब श्री राम ने देखा कि परशुराम का क्रोध अत्यधिक बढ़ चुका है। अग्नि को शांत करने के लिए जैसे जल की आवश्यकता होती हैं। वैसे ही क्रोध रूपी अग्नि को शांत करने के लिए मीठे वचनों की आवश्यकता होती हैं। श्रीराम ने भी वही किया। श्रीराम ने अपने मीठे वचनों से परशुराम का क्रोध शांत करने का प्रयास किया।राम लक्ष्मण परशुराम संवाद अर्थ सहित – Ram Lakshman Parshuram Samvad in Hindi Class 10राम लक्ष्मण परशुराम संवाद के प्रश्नों के उत्तर ,Class 10,क्षितिज
रामचरित्र मानस की विशेषता –
रामचरित्र मानस तुलसीदास की अनन्य राम भक्ति और उनके सृजनात्मक कौशल का सबसे सुंदर उदाहरण है। उनके राम मानवीय मर्यादाओं और आदर्शों के प्रतीक हैं जिनके माध्यम से तुलसीदास ने नीति , स्नेह , शील , त्याग जैसे जीवन के आदर्श मूल्यों को प्रतिष्ठित किया है।रामचरितमानस उत्तर भारत के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। यह अवधी भाषा में लिखी गयी हैं।
रामचरितमानस में मुख्य रूप से चौपाइयां व दोहे हैं। लेकिन बीच-बीच में सोरठे , हरिगीतिका तथा छंदों का भी प्रयोग बड़ी खूबसूरती से किया गया है।राम लक्ष्मण परशुराम संवाद अर्थ सहित – Ram Lakshman Parshuram Samvad in Hindi Class 10राम लक्ष्मण परशुराम संवाद के प्रश्नों के उत्तर ,Class 10,क्षितिज