पाठ :-साना साना हाथ जोड़ि की
सारांश
Ads by Eonadsप्रस्तुत यात्रा वृत्तांत "साना साना हाथ जोड़ि” लेखिका मधु कांकरिया द्वारा लिखी गयी है। इसमें लेखिका ने अपनी सिक्किम की यात्रा , वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य व हिमालय के विराट व भव्य रूप का बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है जो की शहर की भागम-भाग जिंदगी से परे है ।
कहानी की शुरुआत लेखिका के गैंगटॉक शहर में पहुंचने के बाद शुरू होती है। \
लेखिका तारों से भरे आसमान को देख क्र सम्मोहित हो जाती है।
Ads by Eonadsलेखिका गैंगटॉक शहर को “मेहनतकश बादशाहों का शहर” कह कर सम्मानित करती हैं । क्योंकि लेखिका ने देखा है की, वह के लोग बहुत अधिक मेहनत कर अपना जीवन यापन करते हैं।
तारों भरी खूबसूरत रात देखने के बाद अगली सुबह वह एक नेपाली युवती द्वारा सिखाई गई प्रार्थना “साना साना हाथ जोड़ी , गर्दहु प्रार्थना। हाम्रो जीवन तिम्रो कौसेली” यानि “छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूं कि मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो” करती है ।
अगले दिन सवेरे होते ही वे अपने बालकोनी से कंचनजंघा पर्वत देकने के लिए जाती है परन्तु आकाश साफ़ न होने के कारन वह पर्वत नहीं देख पाती है। उसी दिन लेखिका अपनी सहयात्री मणि तथा एक गाइड जीतें नॉर्गे के साथ 149 किलोमीटर दूर यूमथांग घाटी देखने के लिए जाती है। पाइन और धूपी के खूबसूरत नुकीले पेड़ों को देखते हुए वो धीरे-धीरे पहाड़ी रास्तों से आगे बढ़ने लगती हैं।
आगे चलते-चलते लेखिका को एक कतार में , बौद्ध धर्मावलंबियों द्वारा लगाई गई सफेद पताकाएं नजर आती हैं।मंत्र लिखी ये पताकाएं किसी ध्वज की तरह फहरा रही थी जो शांति और अहिंसा का प्रतीक थी।
लेखिका ने जब इन पताकाओं के बारे में पूछा तो उनके साथ जा रहा गाइड, जितेन ने बताया कि जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी पवित्र स्थान पर 108 पताकाएं फहरा दी जाती है। नार्गे ने यह भी बताया कि किसी शुभ अवसर या नए कार्य की शुरुआत करने पर सफेद की जगह रंगीन पताकाएं फहरा दी जाती हैं। आगे जितेन बताते हैं की यहां से थोड़ी दूरी पर स्थित “कवी लोंग स्टॉक ” पर “गाइड” फिल्म की शूटिंग हुई थी। इन रास्तों से आगे बढ़ते हुए एक जगह पर लेखिका ने देखा की एक कुटिया के भीतर चक्र घूम रहा है। गाइड ने बताया की , इसे “प्रेयर व्हील यानि धर्म चक्र” कहा जाता है। उसने यह भी बताया की इस चक्र को घूमने से सारी पाप धूल जाते हैं। यह सुनकर लेखिका को लगा कि “पहाड़ हो या मैदान या कोई भी जगह हो , इस देश की आत्मा एक जैसी ही है”।
जैसे-जैसे लेखिका पहाड़ की ऊंचाई की तरफ आगे बढ़ते जा रही थी ठीक उसी प्रकार, बाजार , लोग , बस्तियां सब आँखों से ओझल होने लगे। अब लेखिका को नीचे घाटियों में पेड़ पौधों के बीच बने छोटे-छोटे घर , ताश के पत्तों से बने घरों की भांति प्रतीत हो रहे थे। और न जाने कितने ही तीर्थयात्रियों , कवियों , दर्शकों साधु संतों के आराध्य हिमालय का विराट व वैभवशाली रूप धीरे-धीरे लेखिका के आँखों के सामने आने लगा था । उनकी जारी "सेवन सिस्टर्स वाटरफॉल्स " पर रूकती है , और सभी यात्री आपने आपने कैमरा में साड़ी दृश्य कैद करने में काग जाते है। अब लेखिका को हिमालय पल-पल बदलता हुआ दृश्य , नजर आ रहा था और मनो ऐसा लग रहा था जैस की कोई जादुई छड़ी हो। पर्वत , झरने , घाटियों , वादियों के दुर्लभ नजारे सभी कुछ बेहद खूबसूरत था । तभी लेखिका की नजर “थिंक ग्रीन” बोर्ड पर पड़ गई। सब कुछ कल्पनाओं से भी ज्यादा सुंदर था।
तभी लेखिका को जमीनी हकीकत का एक दृश्य अंदर से झकझोर गया। जब लेखिका ने कुछ पहाड़ी औरतों को कुदाल और हथौड़ी से पत्थर तोड़ते हुए देखा। कुछ महिलाओं की पीठ में बड़ी सी टोकरिया(डोको) थी जिनमें उनके बच्चे बंधे थे। मातृत्व साधना और श्रम साधना का यह रूप देख कर उनको बड़ा आघात लगा।
Ads by Eonadsपूछने पर उनको पता चला कि ये महिलाएं पहाड़ी रास्तों को चौड़ा बनाने का काम कर रही है और यह बड़ा ही खतरनाक काम होता है। क्योंकि रास्तों को चौड़ा बनाने के लिए डायनामाइट का प्रयोग किया जाता है और कई बार इसमें मजदूरों की मौत भी हो जाती हैं। यह देखकर वह मन मन सोचने लगी “कितना कम लेकर ये लोग , समाज को कितना अधिक वापस कर देते हैं”।
थोड़ा सा और ऊंचाई पर चलने के बाद लेखिका ने देखा कि सात-आठ साल के बच्चे अपने स्कूल से घर लौटते हुए उनसे लिफ्ट मांग रहे थे। लेखिका के स्कूल बस के बारे में पूछने पर नार्गे ने हंसते हुए बताया कि पहाड़ी इलाकों में जीवन बहुत कठोर होता है। ये बच्चे रोज 3 से 4 किलोमीटर टेढ़े- मेढ़े पहाड़ी रास्तों से पैदल चलकर अपने स्कूल पहुंचते हैं। शाम को घर आकर अपनी मांओं के साथ मवेशियों को चराने जंगल जाते हैं। जंगल से भारी भारी लकड़ी के गगट्ठर सिर पर लाद कर घर लाते हैं।
जीप जब धीरे धीरे पहाड़ी रास्तों से बढ़ने लगी तभी सूरज ढलने लगा। लेखिका ने देखा कि कुछ पहाड़ी औरतों गायों को चरा कर वापस अपने घर लौट रही थी। लेखिका की जीप चाय के बागानों से गुजरने लगी। सिक्क्मी परिधान पहने कुछ युवतियां बागानों से चाय की पत्तियां तोड रही थी। चटक हरियाली के बीच सुर्ख लाल रंग , डूबते सूरज की स्वर्णिम और सात्विक आभा में इंद्रधनुषी छटा बिखेर रहा था।
यूमथांग पहुंचने से पहले लेखिका को एक रात लायुंग में बितानी थी।लायुंग गगनचुंबी पहाड़ों के तले एक छोटी सी शांत बस्ती थी। दौड़ भाग भरी जिंदगी से दूर शांत और एकांत जगह। लेखिका अपनी थकान उतारने के लिए तीस्ता नदी के किनारे एक पत्थर के ऊपर जा कर बैठ गई।
रात होने पर गाइड नार्गे के साथ अन्य लोगों ने नाचना – गाना शुरू कर दिया। लेखिका की सहेली मणि ने भी बहुत सुंदर नृत्य किया। लायुंग में लोगों की आजीविका का मुख्य साधन पहाड़ी आलू , धान की खेती और शराब ही है।
लेखिका यहां बर्फ देखना चाहती थी लेकिन उन्हें वहां कहीं भी बर्फ नहीं दिखाई दी। तभी एक स्थानीय युवक ने लेखिका को बताया कि प्रदूषण के कारण अब यहां बर्फबारी बहुत कम होती है। लेखिका को अगर बर्फ देखनी है तो उन्हें “कटाओ यानी भारत का स्विट्जरलैंड” जाना पड़ेगा।
कटाओ पर्यटक स्थल के रूप में अभी उतना विकसित नहीं हुआ था। इसीलिए यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अभी भी पूरी तरह से बरकरार था। लायुंग से कटाओ का सफर लगभग 2 घंटे का था। लेकिन वहां पहुंचने का रास्ता बहुत ही खतरनाक था। कटाओ में बर्फ से ढके पहाड़ चांदी की तरह चमक रहे थे। लेखिका इसे देखकर बहुत ही आनंदित महसूस कर रही थी।
कटाओ में लोग बर्फ के साथ फोटो खिंचवा रहे थे। लेकिन वह तो इस नजारे को अपनी आंखों में भर लेना चाहती थी। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे कि ऋषि-मुनियों को वेदों की रचना करने की प्रेरणा यही से मिली हो और उन्हें यह भी महसूस हुआ कि यदि इस असीम सौंदर्य को कोई अपराधी भी देख ले तो , वह भी आध्यात्मिक या ऋषि हो जाए।
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लेखिका की सहेली मणि के मन में भी दर्शनिकता के भाव पनपने लगे और वह कहने लगी कि प्रकृति की जल संचय व्यवस्था कितनी शानदार हैं। वह अपने अनोखे ढंग से ही जल संचय करती हैं।यह हिमशिखर जल स्तंभ हैं पूरे एशिया के। प्रकृति जाडों में पहाड़ की ऊंची-ऊंची चोटियों में बर्फ जमा देती हैं और गर्मी आते ही बर्फ पिघल कर पानी के रूप में नदियों से बहकर हम तक पहुंचती हैं और हमारी प्यास बुझाती हैं।
नार्गे ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि इस जगह पर गुरु नानकजी की थाली से थोड़े से चावल छिटक कर गिर गए थे। और जहां-जहां वो चावल छिटक कर गिरे। वहां-वहां अब चावल की खेती होती है।
यहां से करीब 3 किलोमीटर आगे चलने के बाद वो खेदुम पहुंचे। यह लगभग 1 किलोमीटर का क्षेत्र था। नार्गे ने बताया कि इस स्थान पर देवी-देवताओं का निवास है। यहां कोई गंदगी नहीं फैलाता है। जो भी गंदगी फैलाता है वह मर जाता है। उसने यह भी बताया कि हम पहाड़ , नदी , झरने इन सब की पूजा करते हैं। हम इन्हें गंदा नहीं कर सकते।
लेखिका के यह कहने पर कि “तभी गैंगटॉक शहर इतना सुंदर है”। नार्गे ने लेखिका को कहा “मैडम गैंगटॉक नहीं गंतोक कहिए। जिसका अर्थ होता है पहाड़”।
उसने आगे बताया कि सिक्किम के भारत में मिलने के कई वर्षों बाद भारतीय आर्मी के एक कप्तान शेखर दत्ता ने इसे पर्यटन स्थल ( टूरिस्ट स्पॉट) बनाने का निर्णय लिया। इसके बाद से ही सिक्किम में पहाड़ों को काटकर रास्ते बनाए जा रहे हैं। नए नए पर्यटन स्थलों की खोज जारी है।लेखिका ने मन ही मन सोचा कि इंसान की इसी असमाप्त खोज का नाम ही तो सौंदर्य है…..।